अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैवकुटम्बकम्॥

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैवकुटम्बकम्॥

- यह मेरा है, वह उसका है जैसे विचार केवल संकुचित मस्तिष्क वाले लोग ही सोचते हैं। विस्तृत मस्तिष्क वाले लोगों के विचार से तो वसुधा एक कुटुम्ब है। 

उद्यमेनैव हि सिध्यन्ति, कार्याणि न मनोरथै । न हि सुप्तस्य सिं ह स्य, प्रविशन्ति मृगाः ॥

उद्यमेनैव हि सिध्यन्ति, कार्याणि न मनोरथै । न हि सुप्तस्य सिं ह स्य, प्रविशन्ति मृगाः ॥

भावार्थ - प्रयत्न करने से ही कार्य पूर्ण होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं, सोते हुए शेर के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते हैं।

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ईर्ष्यी घृणि न संतुष्टः क्रोधिनो नित्यशङ्कितः | परभाग्योपजीवी च षडेते नित्य दुःखिता ||

ईर्ष्यी घृणि न संतुष्टः क्रोधिनो नित्यशङ्कितः | परभाग्योपजीवी च षडेते नित्य दुःखिता ||

भावार्थ -   अन्य व्यक्तियों से घृणा करने वाला , ईर्ष्या करने  वाला,
सदा असन्तुष्ट   रहने वाला ,  क्रोधी,  सदैव शङ्का करने  वाला ,
दूसरों पर आश्रित रहने वाला, ऐसे छः प्रकार के व्यक्ति  नित्य (सदैव)
दुःखी  रहते हैं  |

Subhashita

Subhashita

A subhashita (Sanskrit: सुभाषित, subhāṣita) is a literary genre of Sanskrit epigrammatic poems and their message is an aphorism, maxim, advice, fact, truth, lesson or riddle. Su in Sanskrit means good; bhashita means spoken; which together literally means well-spoken or eloquent saying.