पञ्चाग्नयो मनुष्येण परिचर्याः प्रयत्नतः | पितामाताग्निरात्मा च गुरुश्च भरतर्षभः ||

पञ्चाग्नयो मनुष्येण परिचर्याः प्रयत्नतः |
पितामाताग्निरात्मा च गुरुश्च भरतर्षभः ||
-विदुरनीति

भावार्थ -     हे राजाओं में श्रेष्ठ धृतराष्ट्र  !   पिता, माता, अग्नि ,
आत्मा तथा गुरु, ये पांचो मिल कर पञ्चाग्नि कहे जाते हैं  और
मनुष्य का यह परम कर्तव्य है कि वह विशेष यत्नपूर्वक इन की
सेवा करे  |