आयुर्वेद अब सबसे अधिक मान्यता प्राप्त उपचार में से एक है। पूरी दुनिया में इस वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति का व्यापक रूप से अभ्यास किया जा रहा है। आयुर्वेद की कुछ प्रचलित तकनीक ध्यान, योग , जप, प्राणायाम, पंचकर्म और जड़ी-बूटियाँ हैं, ये व्यक्ति के संपूर्ण स्वास्थ्य को बढ़ावा देती हैं। चाहे आप आयुर्वेद के किसी भी चिकित्सा विशेषज्ञ के पास जाए, वे निवारक और उपचारात्मक दोनों प्रकार के दृष्टिकोण अपनाते हैं।
निवारक उपचार:
यह दृष्टिकोण व्यक्ति को स्वस्थ और दीर्घायु बनाए रखने का प्रयास करता है। निवारक चिकित्सा प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति को परिभाषित करके दैनिक तथा मौसमी आधार पर नियम निर्धारित करती है। इस तरह यह व्यक्ति के तीनों दोषों के संतुलन को समर्थन देने और उनको संतुलन में रखने पर जोर देती है।
ये नियम आहार और व्यायाम से लेकर हर्बल थेरेपी, मालिश , ध्यान, सामाजिक व्यवहार और सकारात्मक संबंधों तक सभी क्षेत्रों पर आधारित होते हैं।
उपचारात्मक इलाज:
ये उपचार व्यक्ति को कोई बीमारी हो चुकी हो तो उसको ठीक करने की कोशिश करते हैं। ऐसा निम्नलिखित तरीकों में से एक या अधिक का उपयोग करके किया जा सकता है:
- आंतरिक उपाय, जिसमें शोधन (डिटॉक्सिफिकेशन) और शमन (दर्द निवारक उपचार के माध्यम से जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए उपयोग किए जाने वाले तरीके) शामिल हैं।
- बाहरी उपाय, स्नेहन ( तेल से उपचार), स्वेदन (हर्बल भाप का उपयोग करके भाप चिकित्सा) और हर्बल पेस्ट के उपयोग आदि।
- सर्जिकल तरीके, इनमें ऊतकों, अंगों और किसी भी हानिकारक शारीरिक वृद्धि को हटाना शामिल है।
- मानसिक और आध्यात्मिक उपचार, जिसे दिव्य चिकित्सा कहा जाता है।
- हर्बल उपाय, जिसमें रस शास्त्र (विभिन्न हर्बल और शुक्ष्म मात्रा में धातु के मिश्रण का उपयोग) शामिल हैं।
आयुर्वेद में पंचकर्म सबसे महत्वपूर्ण उपचार प्रक्रिया होती है। यह आयुर्वेद की एक शोधन प्रक्रिया है, जिसमें शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने और शरीर के त्रिदोषों में संतुलन की स्थिति को प्राप्त करने के लिए पांच क्रियाएं या तकनीक अपनाई जाती है। पंचकर्म एक बहुत प्रभावी उपचार विधि है। हालांकि, यह विधि केवल स्वस्थ बलवान लोगों में ही की जाती है और बहुत बीमार या कमजोर लोगों के लिए यह उचित नहीं है। पंचकर्म मानसिक कार्यों, पाचन प्रक्रिया और ऊतक चैनलों की बहाली और उपचार को बढ़ावा देता है।